इन ट्रेन से पहाड़ों का सफर कभी भूल नहीं पाएंगे
इस गर्मी के अवकाश (Summer Vacation) को खास बनाना चाहते हैं तो पहाड़ों के बीच ट्रेन (Train) का सफर प्लान करें। इसके लिए अंग्रेजों के समय में देश के अलग-अलग हिस्सों में बनीं 5 लाइनों की यात्रा (travel) से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। ये पांचों लाइनें- कालका-शिमला, नीलगिरि, दार्जिलिंग हिमालयन, नेरल-माथेरान और पठानकोट-जोगिन्दरनगर रेलवे यूनेस्को की ओर से वर्ल्ड हेरिटेज घोषित हैं। इन सब का सफर रोमांच से भरपूर तो है ही, कम खर्च में प्रकृति को करीब से समझने का एक शानदार मौका भी है।
कालका-शिमला टॉय ट्रेन
कालका-शिमला रेलवे लाइन की शुरुआत अंग्रेजों की ओर से 1903 में की गई थी। तब शिमला गर्मी में अंग्रेजों की राजधानी हुआ करती थी। करीब 96 किलोमीटर का यह सफर चंडीगढ़ के नजदीक कालका से शुरू होता है। पहाड़ों के बीच से यह यात्रा 102 सुरंगों और 87 पुलों को पार करते हुए शिमला तक पहुंचती है। इस पूरे रास्ते में 20 से अधिक स्टेशन पड़ते हैं। इस ट्रेन में सफर से पहले टिकट बुक कराना ठीक रहता है। इस रूट पर एक तरफ की ट्रेन का टिकट 295 रुपये से लेकर 425 रुपये तक है।
नीलगिरि माउंटेन रेलवे
यह रेलवे तमिलनाडु स्थित नीलगिरि की पहाड़ियों के बीच से गुजरती है। यह सफर मेट्टुपालयम से शुरू होकर कुन्नूर होते हुए उडगमण्डलम (ऊटी) तक जाता है। करीब 46 किलोमीटर के इस सफर में कई सुरंगें और 100 से अधिक पुल आते हैं। इस ट्रेन का पूरा सफर रोमांचकारी है। कुन्नूर अपने आप में हरियाली से भरपूर है। ऊटी का नाम दुनियाभर के पर्यटक स्थलों में शुमार किया जाता है। मेट्टुपालयम पहुंचने के लिए पहले कोयम्बटूर पहुंचें। कोयम्बटूर आप फ्लाइट से भी पहुंच सकते हैं। यहां से मेट्टुपालयम जाने में करीब 1 घन्टे लगते हैं। इस रूट पर फर्स्ट क्लास टिकट 205 रुपये का है।
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे
दार्जिलिंग हिमालयन टॉय ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी से शुरू होकर सिलीगुड़ी और कर्सियांग होते हुए दार्जिलिंग तक पहुंचती है। समुद्र तल से 7400 फीट की ऊंचाई पर यह पूरा सफर करीब 80 किलोमीटर का है। इस रूट पर चाय के बागानों से गुजरते हुए बहुत ही सुखद अनुभव होता है। इस ट्रेन लाइन का निर्माण अंग्रेजों के समय में 1879 से 1881 के बीच किया गया। इस रूट पर एक व्यक्ति का टिकट 595 से 1065 रुपये तक है।
नेरल-माथेरान टॉय ट्रेन
नेरल-माथेरान टॉय ट्रेन का सफर करीब 20 किलोमीटर का है। बहुत ज्यादा ढलान के कारण यह ट्रेन बहुत धीरे चलती है। इससे यह पूरा सफर 2 घन्टे से भी अधिक समय में तय होता है। समुद्र तल से 2600 फीट ऊंचे इस रूट पर एक छोटी सुरंग भी पड़ती है। इस रूट पर ट्रेन की शुरुआत 1907 में हुई थी। 2016 में रुकावट के बाद नेरल से माथेरान के बीच इस सेवा को फिर से 2018 के जनवरी माह में शुरू किया गया। हालांकि इस रुट पर ट्रेन की सेवाएं अब भी सीमित हैं। यात्रा से पहले ट्रेन की जानकारी जरूर जुटा लें। अभी नेरल से माथेरान तक एक आदमी का टिकट 300 रुपये का है।
पठानकोट-जोगिन्दरनगर रेलवे
पठानकोट से जोगिन्दरनगर के बीच टॉय ट्रेन का सफर बहुत ही सुहाना है। इस रूट की शुरुआत 1929 में की गई थी। धौलाधार की करीब 1300 फीट ऊंची पहाड़ियों का यह सफर 163 किलोमीटर लंबा है। इस यात्रा में लगभग 10 घन्टे लगते हैं। यद्यपि इस पूरे रास्ते में सिर्फ 2 ही सुरंग पड़ती हैं, पर कांगड़ा घाटी के नजारे दिल को बहुत ही लुभाने वाले हैं। इस रूट पर एक व्यक्ति का टिकट 300 रुपये का है।
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