राय साहब की दालान

कहानी

प्रतीकात्मक फोटो। (साभार : एआई)

‘धनकू, मंगल, सिपहिया सब दौड़ो दीवान साहब वाले बगीचे की तरफ..जल्दी करो…समय न गंवाओ। कुछ पता नहीं चलेगा बाद में।’ मदन दूर से ही चिल्लाए जा रहा था। रह-रहकर वह घबरा रहा था। उसकी आवाज कभी तेज होती तो कभी धीरे हो रही थी। वह हांफता हुआ लग रहा था, जैसे वह कहीं दूर से दौड़कर आ रहा हो।

दूर दालान में बैठे राय साहब ने उल्टे धनकू से ही पूछते हुए आवाज लगाई-‘अरे क्या हुआ। मदन क्यों जल्दबाजी मचाए हुए है।’ धनकू का जवाब न मिलने पर राय साहब का चेहरा तमतमाए जा रहा था। वह अपने तख्त पर बैठे व्याकुल हो उठे। उन्होंने पूरा माजरा समझने के लिए सिपहिया को भी आवाज लगाई, पर आवाज शोर में कहीं गुम हो गई। राय साहब की बेचैनी और बढ़ गई।

तड़-तड़..तड़। ये गांव के बाहर फायरिंग की आवाज थी। शोरगुल और फायरिंग की आवाज सुनकर मवेशी भी छान-पगहा तोड़ने लगे। राय साहब का अंदाजा सही निकला। वो सोच ही रहे थे कि बड़ा बछड़ा जरूर ऊधम मचा रहा होगा, तख्त से उठकर देखा तो सही में वह खूंटा उखाड़कर दौड़ लगा रहा था। राय साहब का शरीर बूढ़ा हो चला था। अस्सी की उम्र के बाद अब शरीर पूरा साथ नहीं दे रहा था। गांव में प्रसिद्ध है कि अपनी जवानी के दिनों में राय साहब 10 किलोमीटर दूर स्थित गंगा नहाने दिन में दो बार चले जाते और आते थे, वो भी मिनटों में। उनकी फुर्ती की सब दाद दिया करते थे। अब भले कहीं जा न पाते हों, लेकिन दालान में बैठे-बैठे पूरी दुनिया का हाल लेते रहते हैं। गांव का कोई भी मसला या वाकया ऐसा नहीं होगा, जिससे वो वाकिफ न हों, कम से कम पिछले कुछ वर्षों से। राय साहब ने लालटेन की रोशनी तेज की..कोई और दिखे तो बुलाएं बड़े बछड़े को पकड़ने के लिए। शाम रात की तरफ बढ़ रही थी..वैसे ही जैसे लोगों के कदम गांव के बाहर की ओर।

गांव में अमंगल

धनकू और सिपहिया मंगल के साथ गांव के बाहर दीवान साहब वाले बगीचे की तरफ दौड़ लगा चुके थे यह जाने बिना कि आखिर वहां हुआ क्या है। आवाज लगाने के बाद मदन कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। अंधेरे में दूर कहीं-कहीं रोशनी टिमटिमा रही थी, पर माहौल में गर्मी बढ़ती जा रही थी। हर ओर भागो-दौड़ो की आवाज आने लगी थी। गांव की पगडंडियों पर लालटेन और टॉर्च की रोशनी हर थोड़ी दूर दृश्यमान होने लगी थी। लोगों के कदम और तेज हो चले।

ये दो-तीन जीप की रोशनी थी। गांव की मुख्य सड़क से उतरकर जीप अब दीवान साहब के बगीचे की ओर बढ़ चली थीं। इन जीप ने सही रास्ता भी नहीं पकड़ा। खेतों में बोई गेहूं की फसल के बीच से ही जीप निकलती जा रही थीं। हल्के धुंधलके में जीप के भीतर बैठे कुछ लोग दिख रहे थे और ऐसा आभास हो रहा था कि उन लोगों के पास कुछ बंदूकें भी हैं। धनकू, सिपहिया और मंगल बगीचे के करीब पहुंच चुके थे पर अब भी उन्हें माजरा समझ में नहीं आ रहा था। उन्हें यह तो आभास हो चला था कि कुछ तो अमंगल हुआ है गांव में।

तीनों जीप दीवान साहब के बगीचे में दाखिल हो चुकी थीं। एकाएक हैलोजन लाइट जैसी रोशनी हुई बगीचे में और सब कुछ साफ नजर आने लगा। रोशनी उस कुएं पर जाकर केंद्रित हो गई, जिसके ऊपर झाड़-झंखाड़ उग चुका था। कभी इस कुएं के पानी से मैदान में चरने आए गांव के सारे पशुओं की प्यास बुझती थी। अब उसके पानी में सिर्फ खर-पतवार ही दिखाई देता है। मंगल से धनकू बता रहा था कि चार दिन पहले गांव के कुछ बच्चों ने इसमें लाल-पीले कुछ कपड़े देखे थे। एक ने बताया कि उन कपड़ों के बीच से कुछ झांक रहा था। मारे डर के बच्चे भाग निकले थे।

कुएं में रोशनी के बीच जब मोटे रस्से डाले जाने लगे तब मंगल और धनकू का ध्यान इस ओर केंद्रित हुआ। दो हट्ठे-कट्ठे आदमी कुएं के भीतर रस्सों के सहारे उतरने लगे। दरअसल ये तीनों जीप में कोई और नहीं बल्कि पास के थाने से पुलिस टीम पहुंची थी और शायद वह किसी रहस्य को सुलझाने के काफी करीब पहुंच चुकी थी। ‘अपना ध्यान सिर्फ कुएं के भीतर लगाओ’ दरोगा से दिखने वाले एक वर्दीधारी ने कुएं में उतर रहे दोनों व्यक्तियों की तरफ मुखातिब होते हुए कहा। वर्दीधारी की आवाज में कड़क थी। दरअसल गांव वालों की बगीचे में बढ़ती भीड़ पुलिस टीम को उसके मिशन से ध्यान भंग कर रही थी। उनकी खुसर-फुसर पुलिस की परेशानी और बढ़ा रही थी। दो सिपाही तो केवल भीड़ को संभालने में लगे हुए थे। मजाक में एक सिपाही ने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि गांववाले ही कुएं में गिर जाएं और उन्हें निकालने के लिए कुछ और लोग बुलाने पड़े।

हट्ठे-कट्ठे दोनों जाबांज कुएं की आखिरी सतह तक पहुंच चुके थे। ऊपर से लेकर यहां तक उन्होंने जितनी सफाई की, सिर्फ खर-पतवार ही निकला। बीच में इन्हें कुएं के टूटी ईंटों से झांकता एक सांप जरूर नजर आया था, पर वो कब कहां ओझल हो गया, पता नहीं चला। ‘किनारे से उस कपड़े को हटाओ और उसके नीचे देखो।’ ऊपर से दरोगा की ये आवाज कुएं में गूंजी। दोनों जाबांजों में से एक ने हाथ में लिए रॉड से पानी में उतराए कपड़े को एक तरफ कर दिया। जैसे ही कपड़ा हटा, सब भौचक्के रह गए..यह तो आदमी की लाश थी। यह कुछ दिन पुरानी लग रही थी। कुएं के ऊपर लाश बहुत साफ नहीं दिख रही थी, लेकिन दरोगा के चेहरे की खुशी यह बता रही थी कि वह अपने मिशन में कामयाबी के करीब है। ‘लाश को एक किनारे करो। उसकी बायीं ओर क्या है।’ दरोगा की यह आवाज कान में पड़ने से पहले ही दूसरे जांबाज ने खोज निकाला-आखिर कुएं में एक नहीं दो-दो व्यक्तियों की लाश पड़ी थी।

ऐसा कभी नहीं हुआ

बागीचे में कोलाहल मच गया। ‘गांव में ऐसा कभी नहीं हुआ’ बुढ़न चाचा बोले। उनका नाम ही बुढ़न इसलिए पड़ा था कि हर पुरानी सी पुरानी घटना उन्हें याद रहती थी। अब दोनों लाशों का फोटो से मिलान होने लगा। धनकू और मंगल ने पुलिस को गांव के बच्चों द्वारा चार दिन पहले कुएं में कपड़े देखे जाने की बात बताई। अब जांच टीम को यकीन हो गया कि हो न हो पांच दिन पहले से लापता दीपन और कलुवा की है यह लाश है। दोनों इस इलाके के कुख्यात चोर थे। पुलिस के मुखबिर की सूचना भी दीपन और कलुवा की लाश कुएं में पड़े होने के बारे में ही थी। दोनों इसी गांव यानी बिहारीपुर के ही रहने वाले थे। पुलिस ने जैसे ही इन लाशों की शिनाख्त की, गांव में यह सूचना जंगल में आग की तरह फैल गई। इतना होते-होते काफी रात हो चली थी। पुलिस टीम लाशों को लेकर थाने रवाना हो गई।

अगले दिन सुबह राय साहब के दरवाजे पर पूरा गांव इकट्ठा हुआ यह तय करने के लिए कि आखिर दीपन के वादे का क्या किया जाए। राय साहब ने तेज आवाज में कहा-अगर मैं बगीचे में आ सका होता तो पुलिस को दीपन की लाश नहीं ले जाने देता। कम से कम उसके घरवालों को उसकी लाश देखने के लिए पुलिस को एक मौका जरूर देना चाहिए था। इतना सुनना था कि रामबदन राय साहब पर बरस पड़े-‘ हां-हां, क्यों नहीं गांव में एक चोर की प्रतिमा लगवाओ, उसके नाम पर मंदिर बनवा दो।’ रामबदन और बोलते कि राय साहब ने उन्हें बीच में ही टोका-‘रामबदन, तुमसे उम्र में मैं 10 साल बड़ा हूं। सभी शास्त्रों का ज्ञान है मुझे, मैंने कानून की भी डिग्री ली थी। दीपन चोर जरूर था, पर अब वह सुधर गया था। उसने और कलुवा दोनों ने छह महीने पहले ही पंचायत में अब चोरी न करने की कसम खाई थी। हमारा कानून भी इसीलिए तो दंड देता है कि अपराधी सुधर सके। दीपन और कलुवा को अपने किए की सजा तो तभी मिल गई थी, जब वे तीन साल की जेल की सजा काटकर आए थे। दीपन अब तो गांव में लड़कियों के लिए स्कूल बनवाना चाहता था, जिसके लिए गांव-गांव से वह चंदा जुटा रहा था।’ ‘दीपन की इसी बढ़ती लोकप्रियता ने ही तो उसकी हत्या करवा दी, साथ में कलुवा भी मारा गया।’, मदन बीच में बोलने लगा। वह आगे और खुलासा करता जा रहा था-‘पुलिस बता रही थी कि किसी नेताजी ने दोनों का काम तमाम करवाया, क्योंकि उनकी शोहरत में दीपन और उसका कलुवा आड़े आ रहे थे। नेताजी गांव में लड़कियों का स्कूल बनवाकर जो यश कमाते, वो इन दोनों के खाते में चला जाता। नेताजी का नाम लेना जरूरी नहीं है, आप सब समझते हैं।’
हां-ना, सही-गलत की चर्चा के बीच आखिर दो घन्टे के बाद यह तय हुआ कि इस विषय पर सहमति के बाद फैसले से रामबदन सबको अवगत कराएंगे। रामबदन ने फैसला सुनाया-दीपन और कलुवा यद्यपि चोर थे, पर उन्होंने चोरी छोड़कर सही रास्ते पर कदम बढ़ा लिया था, इसलिए उनकी इच्छा के अनुसार गांव में अब महिला कन्या विद्यालय बनेगा और इसमें पूरा गांव सहयोग करेगा।

एक साल बाद…

कन्या महाविद्यालय की आज शुरुआत हो रही है। इसमें जिस पहली कन्या का दाखिला हुआ, वह है दीपन की बेटी। विद्यालय का नाम रखा गया राय साहब कन्या महाविद्यालय। रामबदन मंच से बोल रहे थे ‘मैं गलत था…आखिर राय साहब के पुरजोर प्रयास के चलते ही दीपन जैसे चोर की आखिरी इच्छा पूरी हुई। काश ! आज राय साहब जिंदा होते तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं होता। भले ही वो स्कूल के उद्घाटन में नहीं आ पाते, पर अपने घर की दालान से तालियों की गड़गड़ाहट सुनकर जरूर झूम उठते…।’

उद्घाटन समारोह खत्म हो चुका था। लोग नए स्कूल के परिसर से वापस गांव लौट रहे थे। रास्ते में कुछ लोग कहते जा रहे थे, नेताजी तो आज के उद्घाटन समारोह में दिखे ही नहीं। वह गांव से भी उड़न-छू हो गए हैं। पता नहीं वो लौटें, ना लौटें…।

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