समय से पहले पैदा होने वाले शिशुओं को ये बड़े खतरे

समय से पहले पैदा शिशुओं (Premature babies) के लिए एक-एक पल भारी होता है। दिक्कत पता चलने के 72 घन्टे के भीतर इनका इलाज जरूरी होता है। अपने देश में यह खतरा और भी ज्यादा है। दुनियाभर में समय से पहले जितने शिशु पैदा होते हैं, उसके अकेले 40 फीसदी भारत में पैदा होते हैं। प्री-मेच्योर शिशु उसे कहा जाता है, जिसका जन्म 37 सप्ताह से पहले होता है। ऐसे शिशुओं का वजन 1.5 किलोग्राम से कम होता है। इनको एक साथ कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है। जरा सी सावधानी से इन्हें टाला जा सकता है।

सांस लेने में परेशानी

श्वसन संकट सिंड्रोम (Respiratory distress syndrome) ऐसे शिशुओं में आम बीमारी है। इसमें सांस लेने में परेशानी होती है। इन शिशुओं में प्रोटीन नहीं होता, जो कि सांस लेने में सहायक के तौर पर काम करता है। इस तरह की दिक्कत आने पर डॉक्टर शिशुओं को नवजात गहन चिकित्सा कक्ष (Neonatal intensive care unit) में रखते हैं।

सांस में रुकावट

समय से पहले पैदा कई शिशुओं में श्वास-रोध (Apnea) के लक्षण मिलते हैं। इसमें रह-रहकर 20 सेकेंड तक के लिए सांस रुक जाती है। हृदय गति भी धीमी चलने लगती है। ऐसे में घबराने के बजाय डॉक्टर को समय रहते दिखाना चाहिए।

दिमाग में रक्तस्राव

दिमाग में रक्तस्राव को आईवीएच (Intraventricular hemorrhage) भी कहते हैं। यह दिमाग के केंद्र में वेंट्रिकल्स के पास होता है। वेंट्रिकल्स एक खाली स्थान है, जिसमें तरल पदार्थ भरा होता है। इसमें जरा सी देर शिशु की स्थिति को गंभीर बना देती है।

पीलिया और एनीमिया की आशंका

समय से पहले हुए शिशुओं को पीलिया का भी खतरा रहता है। ऐसा तब होता है जब जिगर (Liver) या तो पूरी तरह विकसित नहीं होता या काम नहीं करता है। ऐसे शिशुओं को एनीमिया की बीमारी भी हो जाती है। इनमें निर्धारित से कम लाल रक्त कोशिकाओं की वजह से ऑक्सीजन शरीर के अंदर नहीं जा पाता। इससे दिक्कत बढ़ जाती है।

अन्य बड़ी बीमारियां

प्री-मेच्योर शिशुओं को फेफड़े, आंत और हृदय से जुड़ीं बीमारियां भी हो जाती हैं। इन्हें सबसे अधिक रोगाणुओं (Germs) का खतरा होता है, क्योंकि इनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत नहीं होती है।

ये बरतें सावधानी

ऐसे शिशुओं को ठंड से बचाएं और हमेशा गर्म वातावरण में रखें। नवजात गहन चिकित्सा कक्ष में भी शिशुओं को गर्म रखा जाता है।

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक्स के अनुसार प्री-मेच्योर शिशुओं को अगर उनकी माता अपना दूध पिलाए तो ज्यादा बेहतर होता है। ऐसा संभव न होने पर पास्टयूरिज्ड (Pasteurized) दूध बोतल में देेना चाहिए।

ऐसे शिशुओं का वजन बढ़ाने का प्रयास करें। इनका वजन कम से कम 1.81 किलोग्राम होना चाहिए। इन शिशुओं को धूल-मिट्टी से दूर रखें। हाथ अच्छी तरह धोकर ही इन्हें पकड़ना चाहिए। इससे इंफेक्शन का खतरा नहीं रहता है।

माताओं की स्थिति भी जिम्मेदार

  • गर्भावस्था के अंतिम दिनों में महिलाओं के ज्यादा काम करने पर उनके शिशुओं के साथ ऐसी स्थिति आ सकती है।
  • पहले बच्चे के जन्म के 6 सप्ताह के भीतर गर्भधारण में भी यह खतरा बना रहता है।
  • 17 साल से कम और 35 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को भी ऐसी स्थिति से सावधान रहना चाहिए।
  • धूम्रपान या शराब का सेवन करने वाली महिलाओं के बच्चों में यह दिक्कत होने की आशंका रहती है।
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