कबीर के इन दोहों को सुनने से होती है परम सत्य और शांति की अनुभूति
15वीं शताब्दी के महान संत कबीर दास (Saint Kabir Das) के हर दोहे (Dohe), सबद (Sabad) या चौपाई (Chaupai) आध्यात्मिकता की ऊंचाई तक ले जाते हैं। कबीर जीवनभर अंधविश्वास, कर्मकांड, और सामाजिक बुराइयों की निंदा करते रहे। हिंदू हो या मुसलमान, उन्होंने दोनों के गलत विचारों या आडम्बरों का समान रूप से विरोध किया। उनके हर दोहे से आज भी उतनी ही प्रेरणा मिलती है, जितनी सैकड़ों वर्ष पहले। ये 5 दोहे खास तौर पर अभी के समय में प्रासंगिक हैं। इन्हें संगीत (Music) के साथ सुनने पर परम सत्य और आनंद की अनुभूति होती है। इससे असीम शांति मिलती है।
पांच संगीतमय दोहे
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचै सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।।
अर्थात, मन में अगर धीरज हो तो सब कुछ होता है। अगर माली पेड़ को सौ घड़े से सींचने लगे तो तब भी तो फल ऋतु आने पर लगेगा।
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागै डारि।।
अर्थात, इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। मनुष्य का शरीर बा-बार नहीं मिलता। जिस तरह से वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो बार-बार नहीं लगता।
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय,
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।।
अर्थात, कबीर दास कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो, जो भविष्य में काम आए। सिर पर धन की गठरी बांधकर जाते तो किसी को नहीं देखा।
कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार,
हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार।।
अर्थात, कबीर के अनुसार जीवन की नौका जर्जर है। उसे खेने वाले मूर्ख हैं, विषय-वासनाओं के सागर में डूबे हैं। इनसे जो मुक्त हैं, हल्के हैं वो तर जाते हैं। साथ ही, भवसागर में डूबने से बच जाते हैं।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत,
कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत।।
मनुष्य यदि मन में हार गया तो पराजय है। यदि उसने मन को जीत लिया तो जीत है। कबीर दास कहते हैं कि ईश्वर को भी मन के विश्वास से जीत सकते हैं।
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