इस थेरेपी में शरीर का अशुद्ध रक्त चूस लिया जाता है

शरीर का अशुद्ध रक्त बीमारियों का कारण बनता है। इनमें कई बीमारियां ऐसी हैं, जो आधुनिक इलाज से भी जल्दी ठीक नहीं होतीं। गठिया बाय, एक्जिमा, सोरायसिस, अन्य चर्म रोग, उच्च रक्तचाप, पीलिया, लिवर बढ़ना आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। इन बीमारियों की नौबत न आए, इसको लेकर आयुर्वेद में कई विधि सुझाई गई हैं। इन्हीं में से एक है-रक्तमोक्षण (Blood-letting) यानि दुष्ट (खराब) रक्त का नवीनीकरण।

दिमाग भी होता है शुद्ध
रक्तमोक्षण पंचकर्म (पांच कर्म) का एक भाग है। आचार्य सुश्रुत के अनुसार इससे शरीर और दिमाग दोनों शुद्ध होता है। रक्तमोक्षण कई तरीके से होता है जिसमें जलौका (Jaluka-Leeches) यानि जोंक के सहारे रक्त शोधन काफी प्रसिद्ध है। प्राचीन यूनान, रोम और अरब देशों में भी जोंक का प्रयोग इलाज में किया जाता रहा है। इसे करने के दौरान दो तरीके अपनाए जाते हैं -बिना शस्त्र (चिकित्सा उपकरण) और शस्त्र (चिकित्सा उपकरण) समेत। यह अलग-अलग व्यक्ति और उसकी परेशानी पर निर्भर करता है कि उसके लिए कौन सा तरीका अपनाना बेहतर होगा। हालांकि इसे अपने से कभी न करें। इसके लिए विशेषज्ञ आयुर्वेदिक चिकित्सक का ही सहारा लेना चाहिए।

40 मिनट की इलाज

जलौका के दौरान सबसे पहले विशेषज्ञ शरीर के उस अंग को चुनकर साफ करते हैं, जहां से अशुद्ध रक्त बाहर करना है। इसके बाद जगह-जगह डॉट बना दिया जाता है। फिर इन स्थानों पर एक-एक कर जोकों (Leeches) को लगा दिया जाता है। ये जोंक एक विशेष जार में 6 माह पहले से बिना खिलाए रखी जाती हैं। इसलिए शरीर पर लगाते ही ये खून चूसने लगती हैं। ये अशुद्ध रक्त और केमिकल को चूसकर शरीर को शुद्ध करती हैं। इनके लार से ऐसा पदार्थ निकलता है, जो रक्त संचार को सही करने के साथ ही इसे जमने से रोकता है। इसके बाद जोंकों को हटाकर डॉट वाली जगह पर पट्टी कर दी जाती है। इसे थोड़ी देर बाद उतार लिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 40 मिनट लगते हैं। बाद में जोकों द्वारा चूसा गया अशुद्ध रक्त उनके शरीर से बाहर कर दिया जाता है। यह अनूठा इलाज बड़े शहरों में आसानी से उपलब्ध है।

वीडियो (साभार) : INSIDER

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