गर्भधारण के दौरान मां को इंफेक्शन तो बच्चा ऑटिज्म का हो सकता है शिकार
जिन बच्चों की मां को गर्भधारण के दौरान किसी भी तरह के इंफेक्शन के चलते अस्पताल में भर्ती होना पड़ा हो, वे आगे चलकर ऑटिज्म और डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन की तरफ से कराए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि ऐसे बच्चों में सामान्य बच्चों के मुकाबले 79 प्रतिशत अधिक ऑटिज्म और 24 प्रतिशत अधिक डिप्रेशन का खतरा होता है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार इन बच्चों में बड़े होकर आत्महत्या के भाव आते हैं।
18 लाख लोगों पर अध्ययन
इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए अध्ययनकर्ताओं ने स्वीडन में 1973 से 2014 के बीच पैदा हुए 18 लाख लोगों के आंकड़े जुटाए। ये आंकड़े अस्पताल से लिए गए। इस दौरान इन लोगों के जन्म से लेकर 41 वर्ष की उम्र तक की गतिविधियों का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि हल्के इंफेक्शन की शिकार माताओं के बच्चों को भी खतरा कहीं से कम नहीं था।
दिमाग के लिए नुकसानदेह
अध्ययन में शामिल यूनिवर्सिटी की प्रसूति रोग विशेषज्ञ क्रिस्टीना एडम्स वाल्डोर्फ के अनुसार इस अध्ययन के जरिए पहली बार डिप्रेशन और ऑटिज्म को गर्भावस्था के संक्रमण से जोड़ा गया। उनके अनुसार मां के शरीर में किसी भी तरह का इंफेक्शन भ्रूण के दिमाग को नुकसान पहुंचाता है, इसलिए गर्भावस्था के दौरान इंफेक्शन को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। यह बच्चे के लंबे भविष्य के लिए भी अच्छा होता है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार इससे बचने के लिए गर्भवती महिलाओं को संक्रमण का टीका जरूर लगवाना चाहिए। एडम्स वाल्डोर्फ कहती हैं कि जो महिलाएं ये टीके नहीं लगवातीं वे बच्चे के साथ-साथ खुद की जिंदगी से भी खिलवाड़ करती हैं।
ऐसे गंभीर है समस्या
ऑटिज्म और डिप्रेशन एक प्रकार के मनोविकार हैं। ये दोनों बहुत भयावह रूप से फैले हुए हैं। देश में 10 वर्ष की उम्र का 100 में से 1 बच्चा ऑटिज्म और 13 से 15 की उम्र तक का 4 में से 1 बच्चा आज डिप्रेशन से पीड़ित है। ऑटिज्म बचपन से विकसित होता है। इसमें बच्चा सही तरीके से बोल नहीं पाता और प्रतिक्रिया देने में समय लगाता है। वह कम घुलना-मिलना पसंद करता है। डिप्रेशन के दौरान व्यक्ति की दैनिक कार्यों में रुचि घटने लगती है। चिड़चिड़ापन या गुस्सा स्वभाव बन जाता है। इसके मरीजों को खुद से घृणा होने लगती है और कई बार वो अपनी जान देने पर उतारू हो जाते हैं। डिप्रेशन का इलाज संभव है पर ऑटिज्म को सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है। इसका कोई पक्का इलाज नहीं है।
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