80 वर्ष की रिसर्च के बाद यह निकला खुशी का राज
खुशी है क्या ? पैसा, प्रसिद्धि या कुछ और ? अगर पैसे और प्रसिद्धि से खुशी मिलनी होती तो अमीर और विख्यात लोग इस दुनिया में दुखी क्यों हैं ? इसका अर्थ है कि खुशी का राज कुछ और ही है, पर ये है क्या ? यही जानने के लिए अमेरिका में 80 वर्षों तक एक रिसर्च की गई। इस रिसर्च में 4 पीढ़ियों के अध्ययनकर्ता शामिल हुए और 10 हजार पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई। अब जाकर खुशी का राज फास किया गया है। इसके अनुसार ज्यादा से ज्यादा घुल-मिलकर रहने वाला व्यक्ति सबसे अधिक खुश होता है।
दुनिया की बड़ी रिसर्च
दुनिया की सबसे बड़ी रिसर्च में से एक हार्वर्ड स्टडी ऑफ एडल्ट डेवेलपमेंट का यह अध्ययन कई मायनों में अनूठा है। सन 1938 में 724 किशोरों पर यह अध्ययन शुरू किया गया था। इनमें से आज भी 60 लोग जिंदा हैं जिनकी उम्र करीब 90 वर्ष है। अध्ययनकर्ताओं ने रिसर्च के लिए अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों को चुना। इनमें हार्वर्ड के ग्रेजुएट और बोस्टन के गरीब तबके के किशोर शामिल थे। राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी भी इनमें से एक थे।
बेहतर जिंदगी का उत्तर
अध्ययन के निदेशक और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सक रॉबर्ट वल्डिंगर बताते हैं कि अध्ययन के दौरान चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। उनके अनुसार जिंदगी को क्या बेहतर बनाता है ? इसका बखूबी उत्तर खोजा गया। उनके अनुसार बेहतर और सटीक परिणाम के लिए अध्ययन में शामिल लोगों के कार्य, उनकी गतिविधियों, उनके दिमाग और यहां तक कि उनके परिजनों के व्यवहार को रिकॉर्ड किया गया। वर्षों चले अध्ययन के दौरान लोगों के कार्य और व्यवहार भी बदलते रहे, मसलन कोई डॉक्टर बन गया, कोई इंजीनियर तो कोई शराब पीने का आदी हो गया। इस दौरान कुछ अध्ययनकर्ता भी बदल गए। उनके अनुसार वो खुद इस अध्ययन में शामिल चौथी पीढ़ी के व्यक्ति हैं। वल्डिंगर कहते हैं कि इन सारी स्थितियों के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया।
प्रगाढ़ संबंध, लंबी जिंदगी
अध्ययन के निदेशक रॉबर्ट वल्डिंगर के अनुसार रिसर्च में पाया गया कि जो लोग अपने परिवार, दोस्तों और अपने समुदाय में ज्यादा घुले-मिले थे या जिनका इन सबसे संबंध प्रगाढ़ था, वे ज्यादा खुश थे। इतना ही नहीं, वे ज्यादा स्वस्थ और लंबी जिंदगी जी रहे थे। इसके विपरीत अकेले रहने वाले लोग कम खुश पाए गए। कम उम्र में ही उनके स्वास्थ्य में गिरावट आने लगी थी। ऐसे लोगों के दिमाग की सक्रियता भी कम दर्ज की गई। अकेले रहने वालों की जीवन अवधि भी ज्यादा नहीं पाई गई।
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