चिन्तपूर्णी मंदिर : सबकी चिंता हरने वाली मां के ऐसे करें दर्शन

चिन्तपूर्णी माता का मंदिर (Chintpurni Mata ka Mandir) हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है। इस मंदिर की बहुत दूर-दूर तक मान्यता है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है। यहां माता सती के चरण गिरे थे, इसीलिए इसे छिन्नमस्तिका कहा जाता है। यह माता भक्तों की सभी चिंताएं दूर कर देती हैं, इसलिए भी इन्हें चिन्तपूर्णी नाम से जाना जाता है। चिन्तपूर्णी मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के मंदिर हैं। यहां दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।

मंदिर का इतिहास

कहा जाता है कि एक बार देवताओं और असुरों के बीच सौ वर्षों तक युद्ध हुआ। इसमें असुर जीत गए और असुरों के राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया। इसके बाद देवता धरती पर सामान्य मनुष्य के तौर पर विचरने लगे। जब असुरों का अत्याचार ज्यादा बढ़ गया तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने को कहा। देवताओं ने पूछा कि कौन सी देवी? इसी दौरान त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ, जिसने स्त्री का रूप ले लिया। फिर देवताओं ने उन्हें सिंह, कमल और माला आदि भेंट की। इस पर खुश होकर देवी ने उन्हें असुरों से उनकी रक्षा का वरदान दिया। उन्होंने महिषासुर से युद्ध किया और विजयी हुईं। इसी के बाद से उनका नाम महिषासुरमर्दिनी पड़ गया।

एक पौराणिक कथा के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया और जानबूझकर शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने सोचा कि पिता के आयोजन में बुलावे की क्या जरूरत। वह खुद ही पहुंच गईं। यज्ञ में पहुंचकर उन्होंने देखा कि यहां शिव का अपमान हो रहा है। वह यह सहन नहीं कर सकीं और हवन कुंड में कूद गईं। भगवान शिव को यह बात जब पता चली तो वह आए और सती के शरीर को हवन कुंड से निकालकर तांडव करने लगे। इससे पूरे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बांट दिया। जो अंग जहां गिरा, वहीं पर शक्ति पीठ बन गया। इन्हीं शक्ति पीठ में से एक चिन्तपूर्णी मंदिर है।

मंदिर की खोज

प्राचीन कथाओं के अनुसार 14वीं शताब्दी में माई दास नामक दुर्गा भक्त ने इस मंदिर की खोज की थी। उनकी उपासना से खुश होकर यहां मां दुर्गा ने उन्हें दर्शन दिए थे। जिस जगह पर उन्होंने आराधना की तब वहां घना जंगल था। वहां पानी आदि की व्यवस्था भी नहीं थी। मां ने माई दास जी को आशीर्वाद दिया था कि जिस जगह पर जाकर शिला उखाड़ोगे, वहां से जल निकल आएगा। जिस स्थान पर जल निकला था, आज उस स्थान पर तालाब है, जिसे जल निकालकर माता का अभिषेक किया जाता है। यहीं पर एक वट वृक्ष था, जिसके नीचे मां चिन्तपूर्णी का भव्य मंदिर बना। तब इस जगह का नाम छपरोह था, अब इसे चिन्तपूर्णी कहते हैं।

कब जाएं मां चिन्तपूर्णी मंदिर

चिन्तपूर्णी मंदिर में नवरात्र में काफी भीड़ लगती है। यहां साल में तीन बार मेले लगते हैं। पहला मेला चैत्र मास के नवरात्र, दूसरा श्रावण मास के नवरात्र और तीसरा मेला अश्विन मास के नवरात्र में लगता है। आप इस दौरान यहां दर्शन के लिए जा सकते हैं। वैसे भीड़ से बचने के लिए सामान्य दिनों में जाना ठीक रहता है।

कैसे पहुंचें और कहां ठहरें

चिन्तपूर्णी के लिए दिल्ली, चंडीगढ़, होशियारपुर और शिमला आदि से सीधी बसें मिलती हैं। चिन्तपूर्णी के लिए निकटतम स्टेशन ऊना है, जिसकी यहां से दूरी करीब 55 किलोमीटर है। चिन्तपूर्णी मंदिर से निकटतम एयरपोर्ट कांगड़ा जिले में स्थित गगल है। यहां से मंदिर की दूरी करीब 70 किलोमीटर है। चिन्तपूर्णी में आप बस अड्डे और मंदिर के पास स्थित धर्मशालाओं में ठहर सकते हैं।

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