बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन की सम्पूर्ण जानकारी, कब-कैसे जाएं, कहां ठहरें
बद्रीनाथ या बद्रीनारायण मंदिर (Badrinath temple) हिंदुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह चार धाम में से एक है, जहां हर हिंदू जीवनकाल में एक बार जाने की इच्छा जरूर रखता है। बद्रीनाथ मंदिर का बहुत प्राचीन इतिहास है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के एक रूप बद्रीनारायण की पूजा होती है। यहां बद्रीनारायण की मूर्ति को भगवान विष्णु की स्वयं प्रकट हुईं मूर्तियों में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि बद्री विशाल के दर्शन मात्र से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है। यहां हर साल लाखों तीर्थयात्री दर्शन के लिए आते हैं। यहां दर्शन करने जाना और ठहरना बहुत ही आसान है।
बद्रीनाथ मंदिर की भौगोलिक स्थिति
बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले में हिमालय की पर्वतमालाओं के बीच है। अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित इस जगह को आधिकारिक तौर पर बद्रीनाथपुरी कहते हैं। यह जोशीमठ तहसील की एक नगर पंचायत है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 3,133 मीटर यानी 10279 फीट है। यहां तापमान बहुत कम होता है और बर्फ जमी रहती है।
ये हैं धार्मिक मान्यताएं
विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, महाभारत और कई अन्य प्राचीन ग्रंथों में बद्रीनाथ मंदिर का जिक्र अलग-अलग नामों से मिलता है। बद्रीनाथ के बारे में एक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार एक बार नारद जी भगवान विष्णु के दर्शन करने क्षीरसागर पहुंचे। वहां माता लक्ष्मी जी उनका पैर दबा रही थीं। जब नारद जी ने विष्णु जी से इसका कारण पूछा तो कथा के अनुसार विष्णु जी को ग्लानि जैसा महसूस हुआ और वो तपस्या के लिए हिमालय को चल दिए। वहां जाकर उन्होंने तपस्या शुरू कर दी। उनके योगध्यान के दौरान ही बहुत अधिक हिमपात होने लगा। यह देख लक्ष्मी जी ने वहां पहुंचकर बद्री वृक्ष का रूप ले लिया और स्वयं अपने ऊपर हिमपात सहने लगीं। वर्षों बाद जब विष्णु जी का तप पूरा हुआ तो उन्होंने लक्ष्मी जी के तप को देखकर कहा कि आपने मेरे साथ बराबर का तप किया है, इसलिए आज से मुझे आपके साथ ही पूजा जाएगा। आपने मेरी रक्षा बद्री के वृक्ष के रूप में की है, इसीलिए मुझे बद्री के नाथ के रूप में जाना जाएगा। तब से यहां बद्रीनाथ की पूजा-अर्चना होती है। बताया जाता है कि व्यास जी ने यहीं पर महाभारत लिखी थी। पांडवों ने इसी स्थान पर अपने पितरों का पिंडदान किया था। यही कारण है कि आज भी बहुत से लोग अपने पितरों के पिंडदान के लिए यहां पहुंचते हैं।
कुछ स्थानों पर इसका उल्लेख मिलता है कि आठवीं शताब्दी तक इस जगह पर बौद्ध मठ था। आदि शंकराचार्य के प्रयासों से यह हिंदू मंदिर का रूप ले पाया। इसके अलावा नर-नारायण की इस स्थान पर तपस्या समेत बद्रीनाथ से जुड़ीं कई और मान्यताएं प्रचलित हैं।
आसपास के दर्शनीय स्थल
बद्रीनाथ मंदिर के नीचे एक हॉट स्प्रिंग (गर्म चश्मा) है। मंदिर में जाने से पहले इसमें स्नान करना आवश्यक माना जाता है। बद्रीनाथ के आसपास कई दर्शनीय स्थान हैं। इनमें ब्रह्म कपाल, वेद व्यास गुफा, चरण पादुका, माता मूर्ति मंदिर और सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) शामिल है। सतोपंथ से ही पांडवों में बड़े युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया था।
दर्शन के लिए सही समय
बद्रीनाथ मंदिर साल में छह महीने बंद रहता है और करीब छह महीने ही खुला रहता है। इस मंदिर में दर्शन के लिए मई से अक्टूबर का समय उचित रहता है। बद्रीनाथ मंदिर अक्टूबर या नवंबर में बंद हो जाता है और फिर अप्रैल के आसपास खुलता है।
बद्रीनाथ कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग
बद्रीनाथ पहुंचने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून के पास स्थित जॉली ग्रांट है। यहां से बद्रीनाथ की दूरी करीब 317 किलोमीटर है। यह एयरपोर्ट दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन पहुंचकर यहां से बद्रीनाथ जाया जा सकता है। यहां से बद्रीनाथ की दूरी 297 किलोमीटर है। कोटद्वार रेलवे स्टेशन से भी बद्रीनाथ पहुंच सकते हैं। यहां से बद्रीनाथ करीब 327 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग
बद्रीनाथ सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए दिल्ली, हरिद्वार और ऋषिकेश से बसें मिलती हैं। इस रूट पर लग्जरी बसें भी चलती हैं। आप निजी टैक्सी बुक करके भी जा सकते हैं।
बद्रीनाथ में कहां ठहरें
बद्रीनाथ धाम यात्रा के दौरान आप निजी होटल में रुक सकते हैं, पर सस्ती और विश्वसनीय सेवा के लिए यात्री निवास में ठहरना चाहिए। इसे गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा संचालित किया जाता है। यहां अच्छी सुविधा मिल जाती है।
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