ल्यूकीमिया के लक्षण से 8 वर्ष पूर्व अब इसका पता लगाना संभव

ल्यूकीमिया जैसी खतरनाक बीमारी के लक्षण के शुरू होने से 8 वर्ष पहले ही अब इसका पता लगाया जा सकेगा। पांच लाख ब्लड सैंपल को परखने के बाद वैज्ञानिक अब इस नतीजे पर पहुंचे हैं। तीव्र मायलोइड ल्यूकीमिया (Acute Myeloid Leukaemia) ऐसी बीमारी है जो प्रायः आखिरी स्टेज में ही पता चलती है। इसके अधिकतर रोगी उपचार के कुछ हफ्ते या महीने तक ही जीवित रह पाते हैं।

इजराइल स्थित वेजमान इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के डॉ. लिरेन श्लश के अनुसार 10 यूरोपियन देशों से जांच के लिए लिए गए सैंपल में मरीजों के आहार, जीवन-शैली और उनका चिकित्सा-इतिहास देखा गया। इस दौरान ऐसे मरीजों का भी आंकड़ा एकत्र किया गया, जिन्होंने अपना कैंसर का इलाज करा रखा था। वैज्ञानिकों ने तीव्र मायलोइड ल्यूकीमिया के मरीजों और गैर-मरीजों के जीन का तुलनात्मक अध्ययन किया। इसके बाद यह खोज संभव हो पाई है। इसके बाद इजराइल के वैज्ञानिक अब इसकी दवा के क्लीनिकल ट्रायल में जुट गए हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस दवा से ल्यूकीमिया को गंभीर स्थिति में पहुंचने से पहले रोका या कम किया जा सकेगा।

यह है ल्यूकीमिया
ल्यूकीमिया को दूसरे शब्दों में ब्लड कैंसर भी कह सकते हैं। हाल ही में डब्ल्यूडब्ल्यूई सुपरस्टार रोमन रेन्स को इसी बीमारी के चलते रिंग को अलविदा कहना पड़ा है। तीव्र मायलोइड ल्यूकीमिया इसी का एक रूप है। इस बीमारी में अपरिपक्व रक्त कोशिकाएं परिपक्व रक्त कोशिकाओं में बदलने के बजाय विभाजित होती रहती हैं। ये रोगग्रस्त कोशिकाएं शरीर पर प्रतिकूल असर डालती हैं।

इन लक्षणों से पहचानें
ल्यूकीमिया से पीड़ित मरीजों को बुखार के साथ थकान महसूस होती है। उनके जोड़ों में दर्द रहता है और दिन पर दिन वजन गिरने लगता है। ऐसे मरीजों की चमड़ी का रंग भी बदलने लगता है। इसके गंभीर मरीजों को बचा पाना मुश्किल होता है। यह रोग बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक किसी को भी हो सकता है।

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